गुरु को भगवान क्यों माने ?
कबीर गुरु गोविंद कर जानिए, रहिए शब्द समाय।
मिलै तो दंडवत बंदगी, नहीं पल-पल ध्यान लगाय।।
गुरु जी को गोविंद (परमात्मा तुल्य) जानना चाहिए और उनके द्वारा दिए गए भक्ति साधना के शब्द को सदा जाप करते रहिए जब कभी गुरुजी मिले उस समय उनको दंडवत प्रणाम करें नहीं तो पल-पल उनमें ध्यान लगाए यानि गुरुजी की याद बनी रहे।
कबीर परमेश्वर ने अपनी वाणी में लिखा है-
कबीर ते नर अंध है, गुरु को कहते और।
हरि के रुठे ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर।।
कबीर परमेश्वर स्वयं तत्वज्ञान बताते हुए कहते हैं कि वह व्यक्ति अंधे ज्ञान नेत्रहीन है जो गुरु को परमात्मा से अन्य केवल संत देखते हैं यदि हरि प्रभु रुष्ठ हो जाए तो गुरु जी की शरण लेनी चाहिए यदि गुरु जी रूठ गए तो साधक को कोई ठिकाना नहीं है जो सुखी कर सके। यदि भगवान रूठ जाता है तो गुरु जी की शरण में जाओ जो आपको नाम दीक्षा तथा आशीर्वाद देकर सुखी कर देगा यदि गुरु जी रुष्ठ हो गए तो परमात्मा भी हमारी सहायता नहीं करेगा।
गणित में जब हम मूलधन निकालते हैं तो उसके लिए हमें मूलधन किसी राशि को मानना पड़ता है तभी हम मूलधन निकाल पाते हैं। उसी प्रकार जब तक हम गुरु को पूर्ण परमात्मा नहीं मानेंगे तो हममें वह गुण विकसित नहीं होंगे जो हमें परमात्मा की प्राप्ति के लिए आवश्यक हैं।
हमारी गुरु के प्रति जैसी श्रद्धा होगी वैसी ही परमात्मा के प्रति होगी यदि हम गुरु को सामान्य मनुष्य मानकर चलते रहे तो हम परमात्मा के सामने आने पर भी उसी प्रकार से आचरण करेंगे। गुरु को परमात्मा मानकर यह रिहर्सल होती है कि जब हम परमात्मा के सामने जाएंगे तो भी हम उसी प्रकार का आचरण करेंगे और हमारी भक्ति सफल होगी अन्यथा नहीं।
गुरु ते अधिक न कोई ठहराई, मोक्ष पंथ नहीं गुरु बिन पाई। राम कृष्ण बड़ तिहुँपुर राजा, तिन गुरु बंदी कीन्ह निज काजा।।
गुरु से अधिक किसी को नहीं माने, गुरु के बिना मोक्ष का रास्ता प्राप्त नहीं हो सकता। उदाहरण के लिए राम तथा श्री कृष्ण को सभी हिंदू भगवान मानते हैं और उनसे बड़ा किसी को नहीं मानते जब श्री राम तथा कृष्ण ने भी गुरु बनाए और अपने गुरु को नमन किया उनके सामने आधीनी से रहे। उनकी आज्ञा का पालन किया तो हमें भी गुरु बनाकर उपदेश दीक्षा लेकर साधना करनी चाहिए। श्री राम तथा श्री कृष्ण तीन लोक में बड़े हैं उन्होंने भी गुरु को प्रणाम करके अपने निजी कार्य को किया उनकी आज्ञा मानी।
जब तक हम गुरु को भगवान नहीं मानेंगे तब तक हमारी भक्ति शुरू भी नहीं होगी। जब हम गुरु को परमात्मा तुल्य मानेंगे तभी हमारी श्रद्धा परमात्मा के प्रति बनेगी जैसा भाव हम गुरु के प्रति रखेंगे वैसा ही भाव हमारा परमात्मा के प्रति बनेगा। भक्ति मार्ग में हम यह रिहर्सल करते हैं जब हम गुरु को परमात्मा तुल्य मानेंगे तभी हमारी आस्था परमात्मा के प्रति जैसी होनी चाहिए वैसे ही बनेगी अन्यथा
जब हम मृत्यु उपरांत परमात्मा से मिलेंगे क्योंकि हमें परमात्मा सतगुरु के रूप में मिलेंगे तो उनमें हमारा भाव वैसा ही होगा जैसा हम अपने गुरु के प्रति रखते आए हैं अतः यदि हम गुरु को परमात्मा के तुल्य मानेंगे तो मरने के उपरांत भी हमारा भाव गुरु के प्रति परमात्मा तुल्य रहेगा और हम परमात्मा के सामने आने पर विनम्र होकर व्यवहार करेंगे और तभी हम भक्ति में सफल होंगे।
जब तक हम गुरु को भगवान तुल्य नहीं मानेंगे तब तक हमारी भक्ति शुरू भी नहीं होगी और यह चलेगी भी नहीं।
गुरु को भगवान माने बिना हम भक्ति करते हुए तो दिखेंगे लेकिन वह भक्ति बीज अंकुरित नहीं होगा।
उपदेश लेने के बाद हमें सतगुरु को पूर्ण परमात्मा समझना पड़ेगा।
जैसे हम सतलोक ( हमारा निज स्थान) से काल के प्रति आसक्त होकर इस लोक में आ गए जब हममें गुरु के प्रति, वही भाव, वहीं कसक होगी तभी हम सतलोक वापस जा सकेंगे।
हमारे यहां की जाने वाली रिहर्सल यानी गुरु को परमात्मा तुल्य मानना, वहां जाकर सतलोक में काम आएगी और तभी हमारी हमारे गुरु के प्रति आसक्ति होगी और तभी हम भक्ति मार्ग में सफल होंगे।
वर्तमान में कौन है वह सतगुरु जिसके प्रति हमारी आस्था परमात्मा जैसी होनी चाहिए ?
जानने के लिए अवश्य देखिए साधना चैनल 7:30 p.m.
कबीर गुरु गोविंद कर जानिए, रहिए शब्द समाय।
मिलै तो दंडवत बंदगी, नहीं पल-पल ध्यान लगाय।।
गुरु जी को गोविंद (परमात्मा तुल्य) जानना चाहिए और उनके द्वारा दिए गए भक्ति साधना के शब्द को सदा जाप करते रहिए जब कभी गुरुजी मिले उस समय उनको दंडवत प्रणाम करें नहीं तो पल-पल उनमें ध्यान लगाए यानि गुरुजी की याद बनी रहे।
Is Guru a God |
संत रामपाल जी महाराज से प्राप्त तत्व ज्ञान की प्राप्ति के पश्चात पता चला कि यदि सद्गुरु नहीं मिलते तो भक्तिहीन प्राणी यमद्वार अर्थात काल के नरक के द्वार, जिसके अंदर यमराज विराजमान हैं उसमें करोड़ों यातनाएं पाता।
कबीर ते नर अंध है, गुरु को कहते और।
हरि के रुठे ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर।।
कबीर परमेश्वर स्वयं तत्वज्ञान बताते हुए कहते हैं कि वह व्यक्ति अंधे ज्ञान नेत्रहीन है जो गुरु को परमात्मा से अन्य केवल संत देखते हैं यदि हरि प्रभु रुष्ठ हो जाए तो गुरु जी की शरण लेनी चाहिए यदि गुरु जी रूठ गए तो साधक को कोई ठिकाना नहीं है जो सुखी कर सके। यदि भगवान रूठ जाता है तो गुरु जी की शरण में जाओ जो आपको नाम दीक्षा तथा आशीर्वाद देकर सुखी कर देगा यदि गुरु जी रुष्ठ हो गए तो परमात्मा भी हमारी सहायता नहीं करेगा।
हमारी गुरु के प्रति जैसी श्रद्धा होगी वैसी ही परमात्मा के प्रति होगी यदि हम गुरु को सामान्य मनुष्य मानकर चलते रहे तो हम परमात्मा के सामने आने पर भी उसी प्रकार से आचरण करेंगे। गुरु को परमात्मा मानकर यह रिहर्सल होती है कि जब हम परमात्मा के सामने जाएंगे तो भी हम उसी प्रकार का आचरण करेंगे और हमारी भक्ति सफल होगी अन्यथा नहीं।
गुरु ते अधिक न कोई ठहराई, मोक्ष पंथ नहीं गुरु बिन पाई। राम कृष्ण बड़ तिहुँपुर राजा, तिन गुरु बंदी कीन्ह निज काजा।।
गुरु से अधिक किसी को नहीं माने, गुरु के बिना मोक्ष का रास्ता प्राप्त नहीं हो सकता। उदाहरण के लिए राम तथा श्री कृष्ण को सभी हिंदू भगवान मानते हैं और उनसे बड़ा किसी को नहीं मानते जब श्री राम तथा कृष्ण ने भी गुरु बनाए और अपने गुरु को नमन किया उनके सामने आधीनी से रहे। उनकी आज्ञा का पालन किया तो हमें भी गुरु बनाकर उपदेश दीक्षा लेकर साधना करनी चाहिए। श्री राम तथा श्री कृष्ण तीन लोक में बड़े हैं उन्होंने भी गुरु को प्रणाम करके अपने निजी कार्य को किया उनकी आज्ञा मानी।
जब हम मृत्यु उपरांत परमात्मा से मिलेंगे क्योंकि हमें परमात्मा सतगुरु के रूप में मिलेंगे तो उनमें हमारा भाव वैसा ही होगा जैसा हम अपने गुरु के प्रति रखते आए हैं अतः यदि हम गुरु को परमात्मा के तुल्य मानेंगे तो मरने के उपरांत भी हमारा भाव गुरु के प्रति परमात्मा तुल्य रहेगा और हम परमात्मा के सामने आने पर विनम्र होकर व्यवहार करेंगे और तभी हम भक्ति में सफल होंगे।
जब तक हम गुरु को भगवान तुल्य नहीं मानेंगे तब तक हमारी भक्ति शुरू भी नहीं होगी और यह चलेगी भी नहीं।
गुरु को भगवान माने बिना हम भक्ति करते हुए तो दिखेंगे लेकिन वह भक्ति बीज अंकुरित नहीं होगा।
उपदेश लेने के बाद हमें सतगुरु को पूर्ण परमात्मा समझना पड़ेगा।
जैसे हम सतलोक ( हमारा निज स्थान) से काल के प्रति आसक्त होकर इस लोक में आ गए जब हममें गुरु के प्रति, वही भाव, वहीं कसक होगी तभी हम सतलोक वापस जा सकेंगे।
हमारे यहां की जाने वाली रिहर्सल यानी गुरु को परमात्मा तुल्य मानना, वहां जाकर सतलोक में काम आएगी और तभी हमारी हमारे गुरु के प्रति आसक्ति होगी और तभी हम भक्ति मार्ग में सफल होंगे।
वर्तमान में कौन है वह सतगुरु जिसके प्रति हमारी आस्था परमात्मा जैसी होनी चाहिए ?
जानने के लिए अवश्य देखिए साधना चैनल 7:30 p.m.